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मैँ सैनिक हूँ ।

AAKASH
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सरहद पर अपनी निगाहे जमाकर दुशमन की कारगुजारियोँ से वतन की आबरु के सूरक्षा का व्रत लिए हुए मैँ एक सैनिक हूँ । मुझे न वनिता का प्यार अपने मोहपाश मे बाध पाता है , न पुत्र का स्नेह और न ही माँ की ममता अपनी ओर खीच पाती है । मैँ संगीनो की नोक पर चल कर देशवासियोँ के जिँदगी को फूलो की महक से भर देने की आकांक्षा संजोए हुए हूँ । ” चाहता हूँ
अपना जीवन
देश के नाम
होम कर दूँ ।
वतन की
हर चुनौतियाँ
हर मुश्किल
अपने नाम कर
अपनी सारी ख़ुशियाँ
अपने देशवासियोँ के नाम कर दूँ
जब सास रुके
तिरंगा नसिब हो
चाहे जितना हो हम
पर दिल के करीब हो ।
अपने सपनो का गला घोट कर आपके अरमानो को जीवित रखना मेरा कर्तव्य बन चुका है , बचपन मे अरमानो का इन्द्रधनुषी रंग मेरे अन्दर भी प्रस्फुटित होता था , आकांक्षाओँ का सैलाब कुलाचे भरता था और कुछ कर गुजरने के लिए मन मचलता था । जिधर भी नजर घुमाता रंगीनियोँ से भरी रंगीन शमा नजर आती थी । मैँ कही कुबेर का खजाना बटोरता तो कही सफलता के शीर्ष पर मुस्कुराता नजर आता था । इसी उधेड़ बुन मेँ गोता लगाते -लगाते मेरी निगाहे वर्दीधारी सैनिक पर जा टिकी । सैनिक के जोशिले जज्बाती और जुनुनी स्वभाव ने मुझे अपनी ओर खीचा और मैँ उसके आगोश मेँ समाता चला गया । वर्दी के रुप मे देशवासियोँ के सुरक्षा के जिम्मेदारी का चादर ओढा और एक समर्पित सैनिक बन बैठा । अब मेरा अपना कुछ भी न रहा सब कुछ वतन की राहो मे बिछ गया । यहाँ तक की मेरी आकांक्षा ने भी मेरा दामन छोड़ दिया और वतन की हो चली । अपने प्रेयसी से मिलने की बेला निर्धारित करने का अधिकार भी मेरा अपना न रहा । कभी राजस्थान की चिलचिलाती धूप मेँ खून , पसीना बन कर बह जाता तो कभी हिमशिखरो पर लहू जम सी जाती है । जब भी चंदन और गुलाल सी वतन के माटी की बात आती है भुजाए फड़कने लगती है , दिल की धड़कने तेज हो जाती है और धमनियोँ मे दौड़ता लहू उबलने लगता है । सब कुछ भूल कर सोचने लगता हूँ शायद
माँ लोरियाँ गाती थी ,
मेरे लहू मे बारुद भरते भरते ।
अभिमन्यू की कहानियाँ सुनाती ,
नित पूजा करते-करते ।
आज वही दूहराये जाता हूँ .
समरांगन मे लड़ते-लड़ते ।
माँ , उऋण तो नही हो सकता ,
अमन लौटाये जाता हूँ मरते- मरते ।
लहू से लथपथ,हूँ छलनी -छलनी,
शत्रु दम्भ दमन करते-करते ।
अब भी हारा नही , जोश बाकी है ,
शस्त्र रुका है अंतिम नमन करते- करते ।
माँ . न रोना कि तेरा लाल चला गया ,
वतन की रक्षा करते करते ।
अनुज को भी भेज देना कल ,
शस्त्र थमा माथे पे टिका करते करते ।
हिन्दू है या मुस्लिम , सोचा नही करते ,
माँ तुम्हारी रक्षा करते करते ।
येँ तो सोच है उनकी ,
जो खूद डरा करते है राह चलते चलते । JAI HIND

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